लेखिका परिचय
संक्षिप्त परिचय
जन्म तिथि : 21 जुलाई 1953
शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी साहित्य एवं एम.ए. समाज शास्त्र, बी.एड.
रचनाएँ : नया रास्ता, प्रतीक्षिता, आसरा, अनोखा उपहार. तीन बीहा ज़मीन, मन के जीते जीत, कुल का चिराग (प्रकाशित)
नया रास्ता
भूमिका
सुषमा अग्रवाल द्वारा रचित 'नया रास्ता' एक सामाजिक उपन्यास है जिसमें लेखिका ने सामाजिक रूढ़ियों, सड़ी-गली परंपराओं और विचारों का विरोध किया है तथा समाज में स्त्री के स्वप्न, संघर्ष और सफलता प्राप्त करने के अदम्य साहस को प्रस्तुत किया है।
(साभार हिन्दी दर्पण ब्लॉग)
'समाज में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यकता है साहस की। कष्टों के निवारण हेतु यदि युवतियाँ आत्महत्या करती रहीं तो समाज में व्याप्त दहेज की महामारी कभी समाप्त नहीं हो पायेगी। आज वह समय आ गया है जब सभी युवतियों को साहस व धैर्य से काम लेना होगा। इसके लिए सबसे पहले उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करके अपने पाँव पर खड़ा होना होगा।'
- सुषमा अग्रवाल
अंक – १
शब्दार्थ
यौवन – जवानी
दहलीज – देहली, देहरी
दर्पण – आईना, शीशा
विस्मित – चकित
साँवली – श्याम वर्ण
लालिमा – लाली, सुर्खी
स्मृतियों – स्मरण, यादों
आभास – संकेत
मुद्राओं – भाव-भंगिमाओं
नाक नक्श –
चेहरे की बनावट
सारांश
Ø नीलिमा का आइने में स्वयं को निहारना तथा मीनू का नीलिमा से मिलने आना।
Ø मीनू का नीलिमा को खुश होकर बताना कि मेरठ वालो ने उसकी तस्वीर विवाह के लिए पसंद कर ली है और अब वे उसे देखने आएँगे।
Ø मीनू का पिछले अनुभवों को यादकर दुखी और मायूस हो जाना क्योंकि इससे पहले भी लड़केवालों ने उसके साँवले रंग और छोटे कद की वज़ह से उसे अस्वीकार कर दिया था।
Ø नीलिमा उसका ध्यान बँटाने के लिए अपनी कुछ तस्वीरें उसे दिखाती है जिसे देखकर मीनू नीलिमा की सुंदरता की तारीफ़ भी करती है।
Ø मीनू का भाई रोहित M.A के परिणामफल वाला अखबार लेकर आता है, जिससे पता चलता है कि मीनू प्रथम श्रेणी में और नीलिमा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुई हैं।
Ø मीनू का खुश होकर घर चले जाना और नीलिमा की इन पंक्तियों का गुनगुनाना:-
" कभी सुख है, कभी दुख है । अभी क्या था अभी क्या है ।"
नोट : मीनू अपने छोटे कद और साँवले रंग के कारण हीनभावना से ग्रसित, पढ़ाई में अव्वल, एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण, दोस्ती निभाने वाली युवती
अंक-२
शब्दार्थ
हैसियत – योग्यता
सुसज्जित अच्छे से सजाया हुआ
व्यंजन- पकवान
निखार - सौन्दर्य
बेताबी से- व्याकुलता से
आतिथ्य – मेहमाननवाज़ी
अन्तर्द्वंद्व – हृदय का संशय
तीव्र – तेज़
बचकानी – बच्चों की सी
नादान – नासमझ
संजोग – संयोग, विवाह संबंध
सारांश
Ø
मीनू के घर पर मेरठ वालों के लिए पूरी व्यवस्था करना, तरह-तरह
के पकवानों और मिठाइयों की व्यवस्था करना।
Ø
मेरठ से अमित का अपने माता-पिता एवं अपनी बहन मधु के साथ मीनू
के घर आना।
Ø
मीनू का गुलाबी साड़ी में आना, अमित का मीनू से उसकी पढ़ाई के
बारे में तथा संयुक्त परिवार के संबंध में उसके विचार पूछना।
Ø
मीनू को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, खाना बनाना और पेंटिंग
(चित्रकारी) में अत्यधिक रुचि।
Ø
मीनू की बहन आशा का कमरे में प्रवेश कर सभी से हँस-हँस कर बातें
करने से अमित के माता- पिता का उसकी ओर आकर्षित होना क्योंकि वह मीनू से दिखने में
अधिक सुंदर थी।
Ø
मीनू की माँ को इस बात से चिंता होती है और वे आशा को दूसरे
कमरे में भेज देती हैं।
Ø
अमित के पिता मायाराम जी अपना जवाब पत्र में देने का कहकर विदा
लेते हैं।
Ø
अमित के परिवारवालों के जाने के बाद दयाराम और उनकी पत्नी मीनू
के रिश्ते की मंजूरी की लिए चिंतित थे।
Ø
मीनू का आशा के पास आना, आशा का मीनू की प्रशंसा करना तथा मीनू
का यह कहना कि, देखो क्या होता है ?
नोट : मीनू की शिक्षा, सभ्यता, शिष्टाचार और भोली सूरत से अमित प्रभावित होता है। मीनू के हृदय में अंतर्द्वंद्व चलता है कि क्या अमित के घरवाले उसे पसंद करेंगे।
अंक-३
शब्दार्थ
वातावरण – परिस्थिति
व्यवहार – आचरण
तर्क – दलील
युक्ति – उपाय
क्रूर – निर्दय
उकसाना – उत्तेजित करना
मन:स्थिति – मन की दशा
विकल – व्याकुल
सारांश
Ø अमित के परिवार वालों का घर पहुँचकर
अपने घर पर सेठ धनीमल जी से मिलना।
Ø धनीमल जी का मायाराम को अपनी बड़ी बेटी
सरिता के लिए अमित का हाथ माँगना एवं
पाँच लाख का लालच देना।
Ø मायाराम जी के साफ़ मना करने पर धनीमल
जी का उन्हें और अधिक लालच देना जिस कारण अमित की माता जी का मन भ्रमित हो गया।
Ø अमित अपनी माँ से कहता है कि बड़े घर
की लड़की क्या तुम्हारे साथ रह सकेगी?
Ø अमित की माँ का धन के लोभ में पड़कर
अपने निर्णय के आगे सभी को नतमस्तक करवाना।
Ø मीनू के परिवार को मना करने के लिए
माँ का एक क्रूर योजना बनाना कि उन्हें मीनू की जगह आशा से अमित का रिश्ता जोड़ना है।
Ø मायाराम जी का इस क्रूर योजना में सम्मिलित
न होने की इच्छा परंतु पत्नी के तर्क और हठ के आगे हार मान लेना ।
नोट : धनीमल द्वारा पाँच लाख दहेज की पेशकश के सामने मायाराम की पत्नी झुक जाती है और घर के सभी सदस्यों को भी मना लेती है। अमित के मन की आत को भी नज़र-अंदाज़ कर देती है।
अंक-४
शब्दार्थ
कल्पना – अनुमान
कुरूप – सुंदर
सांत्वना – दिलासा
विवश करना – मजबूर करना
अभिप्राय – मतलब, अर्थ
जालिम – निर्दयी
वास्तविकता – असलियत
घृणा – नफ़रत
रिवाज – प्रथा, चलन
सारांश
Ø
मीनू एवं उसका परिवार मायाराम जी के पत्र का बेसब्री से इंतज़ार
कर रहे थे।
Ø
मेरठ से आए पत्र को पढ़कर दयाराम के परिवार वालों के चेहरों पर
उदासी छा जाती है। मीनू अंदर तक टूट जाती है और विवाह न करने का निश्चय करती है।
Ø दयाराम जी और उनकी पत्नी इस बात से हैरान और परेशान थे कि मायाराम जी ने मीनू की जगह आशा का रिश्ता क्यों माँगा।
Ø मीनू को अपने माता-पिता की इस परेशानी का पता चलता है और वह उनसे अपने विवाह न करने के निर्णय तथा आशा के विवाह कराने के संदर्भ में बातें करती है।
Ø
मीनू अपने पिता को समाज की परवाह नहीं करने की सलाह देती
है।
Ø
मीनू अपनी माता जी को अपने विवाह न करने के निर्णय को स्वीकार
करने के लिए उन्हें समझाती है कि, आज के युग में स्त्रियाँ भी पुरुषों के समानआत्मनिर्भर
होती हैं।
Ø दयाराम जी और उनकी पत्नी कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ थे इसीलिए उन्होंने अपने एक घनिष्ठ मित्र की राय ली।
Ø
मित्र की सलाह से वे मेरठ जाते हैं जहाँ उन्हें सेठ धनीमल जी
मिलते हैं और उनसे उन्हें इस बात की जानकारी मिलती है कि उनकी बेटी का रिश्ता अमित
से होने वाली है।
Ø
दयाराम जी उसी क्षण वहाँ बिना किसी से मिले घर वापस चले आते
है। उन्हें मेरठ वालों की क्रूर योजना का पता चल जाता है और वे इस बात से चिंतित हो
जाते हैं कि, अपने परिवारवालों को वे क्या जवाब देंगे।
नोट : मीनू के द्वारा विवाह नहीं करने का निर्णय लेना। वह समाज की परवाह नहीं करते हुए अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय करती है।
अंक-५
शब्दार्थ
व्यर्थ – बेकार
लगन – लगाव, इच्छा
सिहरना – काँपना
उद्देश्य – अभिप्राय
देदीप्यमान – चमकता हुआ
ठेस – आधात, चोट
डगर – रास्ता
सारांश
Ø
विपरीत परिस्थितियों में मीनू भी निराश हो जाती थी परंतु दृढ़ता
और साहस की मूर्ति मीनू ने यह निश्चय किया कि वह अपने बचपन के सपने को साकार करेगी।
Ø
मीनू ने मेरठ के विद्यालय में वकालत की पढ़ाई करने के लिए दाखिला
लिया।
Ø मीनू अपने बल-बूते पर धन कमाकर समाज में सिर ऊँचा करना चाहती थी क्योंकि वह सच्चाई को मान चुकी थी कि, धनी व्यक्ति की ही समाज में कद्र होती है।
Ø मीनू के माता-पिता ने उसे मेरठ के होस्टल में रहने की आज्ञा दे दी और माँ ने उसके जाने की तैयारियों में मदद की।
Ø
माँ ने उसे देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति संसार को प्रकाशमयी
कर देने का आशीर्वाद भी दे दिया।
Ø
होस्टल में उसे घर की बहुत याद आती है और वह अपने बचपन की बातें
याद करने लगती है,जैसे माँ की बात कि लड़कियों को इतना कोई नहीं पढ़ाता, अठारह की
होते ही शादी कर दी जाती है।
Ø
दो दिन बाद ही मीनू के पिता उसके लिए बहुत सारा सामान लेकर होस्टल
पहुँच गए।
Ø
पिता के वापस जाने पर मीनू के मन में घर की मधुर स्मृतियाँ फिर
से तरोताज़ा हो गईं।
नोट : मीनू दृढ़ता और साहस की मूर्ति है। माता-पिता को मनाकर उसने मेरठ जाकर छात्रावास में रहकर वकालत पढ़ने का निर्णय ले लिया।